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पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से बदल सकते हैं सत्ता के ये 5 समीकरण, पढ़ें- बंगाल से केरल तक का विश्लेषण

 


चुनाव आयोग की ओर से 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सत्ता की लड़ाई का बिगुल बज चुका है। असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में चुनाव के नतीजे 2 मई को एक साथ ही घोषित किए जाएंगे। इन 5 राज्यों के चुनाव नतीजे देश में सत्ता के समीकरणों में भी 5 बड़े बदलाव ला सकते हैं। पश्चिम बंगाल में एक तरफ टीएमसी और बीजेपी के बीच जोरदार लड़ाई देखने को मिल सकती है तो केरल में वामपंथी दल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। पुडुचेरी में चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन लगा है और बीजेपी मजबूती से उभरती दिख रही है। ऐसे में इन राज्यों के चुनाव अहम हैं और सत्ता के समीकरण में बड़े बदलाव का कारण बन सकते हैं। आइए जानते हैं, चुनावों के बाद हो सकते हैं क्या बदलाव...

बंगाल जीती बीजेपी तो पूर्वी छोर पर पहली बार लहराएगा भगवा
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद देश के कई ऐसे राज्यों में अपनी पैठ मजबूत की है, जहां वह पहले बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थी। हरियाणा से लेकर असम तक ऐसे कई उदाहरण हैं। ऐसे में यदि पश्चिम बंगाल में बीजेपी जीत हासिल करती है तो पहली बार पूर्वी छोर पर भगवा लहराएगा। पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक पूर्वी छोर पर बीजेपी कमजोर रही है। 2019 के आम चुनाव में बंगाल में 40 पर्सेंट वोट शेयर हासिल करने वाली बीजेपी को इस बार बड़ी उम्मीदें हैं। यही नहीं तमिलनाडु में भी एआईएडीएमके के समर्थन से वह कुछ बेहतर करने की कोशिश करेगी।

केरल में हारा तो सत्ता से 'लेफ्ट' हो जाएंगे वामपंथी दल
भारत में पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल को वामपंथी दलों के गढ़ के तौर पर जाना जाता था। आज पश्चिम बंगाल में वामपंथी दल मुख्य मुकाबले से भी बाहर दिख रहे हैं। वहीं त्रिपुरा में बीजेपी सरकार बना चुकी है। ऐसे में केरल ही एक ऐसा राज्य है, जहां लेफ्ट की सरकार है। पिनराई विजयन के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे वामपंथी दलों को यदि यहां शिकस्त झेलनी पड़ती है तो फिर वह किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं रह जाएंगे। केरल में वामपंथी पार्टी सीपीएम के लिए यह चुनाव 'करो या मरो' की स्थिति वाला है।

क्षेत्रीय दलों की ताकत भी होगी साबित
2014 के बाद बीजेपी के उभार जिस तरह से हुआ है, उसमें देश में कुछ ही क्षेत्रीय दल हैं, जो बेहद मजबूत हैं। इन दलों में से एक टीएमसी भी है। यदि पश्चिम बंगाल की सत्ता से टीएमसी बेदखल होती है तो एक मजबूत क्षेत्रीय दल की हैसियत भी उसकी नहीं रहेगी। बीएसपी और एसपी जैसे दलों के कमजोर होने के बाद टीएमसी का कमजोर होना राष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों पर असर डालेगा। इसके अलावा तमिलनाडु में डीएमके ने लोकसभा में बड़ी संख्या में सीटें जीतकर मजबूत स्थिति हासिल की है। यदि विधानसभा चुनाव में वह जीत जाती है तो उसका कद राष्ट्रीय राजनीति में भी बढ़ जाएगा।

कांग्रेस के लिए अहम हैं केरल, तमिलनाडु और असम
लोकसभा की कुल 543 सीटों में केरल, तमिलनाडु और असम की हिस्सेदारी 13 पर्सेंट है। 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को कुल 52 सीटें मिली थीं, जिनमें से आधी सीटें उसने इन्हीं राज्यों से हासिल की थीं। ऐसे में कांग्रेस के लिए ये तीनों राज्य अहम हैं। तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके के साथ जूनियर पार्टनर के रोल में है। वहीं केरल में वह यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की मुखिया है। लेफ्ट, कांग्रेस के अलावा बीजेपी भी वहां बड़ा प्लेयर बनने की कोशिश में है। यदि त्रिकोणीय मुकाबला होता है और कांग्रेस के  हाथ से बाजी निकलती है तो उसके लिए बड़ा झटका होगा। असम में कांग्रेस ने इस चुनाव में पहली बार (AIUDF) के साथ गठबंधन का फैसला लिया है। मुख्य तौर पर मुस्लिमों में आधार रखने वाली AIUDF के साथ उसके गठबंधन की भी परीक्षा होगी।

ध्रुवीकरण के मुद्दों पर भी साफ होगी तस्वीर
पश्चिम बंगाल, केरल और असम जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में मुस्लिम और ईसाई आबादी है। ऐसे में ये राज्य ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए भी अहम माने जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में तो 'जय श्री राम' का नारा, सरस्वती पूजा और मुस्लिम तुष्टीकरण चुनावी मुद्दे बन चुके हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि ध्रुवीकरण के इन मुद्दों पर वोटर्स का क्या रुख रहता है।