नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) से लोगों को बचाने के लिए देश में बड़े स्तर पर टीकाकरण (Corona Vaccine) का अभियान चल रहा है। इसके तहत अब तक देश में कोरोना वैक्सीन (Covid 19 Vaccine) की 21 करोड़ से अधिक डोज लगाई जा चुकी हैं। लेकिन हाल ही में सरकार ने कोरोना वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज के बीच के समय को 6-8 हफ्ते से बढ़ाकर 12-16 हफ्ते कर दिया है। इस बीच देश में वैक्सीन की कमी भी देखने को मिल रही है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति कोरोना की पहली डोज लगवा चुका है और अगर उसे दूसरी डोज उचित समय पर नहीं मिलती है तो आखिर उसे क्या नुकसान होगा?
दोनों डोज में 12-14 सप्ताह का अंतराल
अमर उजाला ने इस बारे में जानने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेल मेडिसिन के डॉ विक्रमजीत सिंह से बातचीत की। डॉ विक्रमजीत बताते हैं कि दुनियाभर के तमाम स्वास्थ्य संगठन पहली और दूसरी डोज में अंतराल रखने की सलाह देते हैं। पहले यह अंतराल 4-6 हफ्ते था जिसे बाद में बढ़ाकर 6-8 हफ्ते और अब 12-14 हफ्ते का कर दिया गया है। वैक्सीन की दोनों डोज में 12-14 हफ्ते हफ्ते का अंतराल रखने से इसकी प्रभाविकता 90 फीसदी से ऊपर की पाई गई है।
तय समय पर दूसरी खुराक न मिलने के प्रभाव
डॉ विक्रमजीत सिंह बताते हैं कि यदि किसी को किन्हीं कारणों से तय समय पर दूसरी खुराक नहीं मिल पाती है तो इससे घबराना नहीं चाहिए। आप कुछ दिनों बाद भी टीकाकरण करा सकते हैं। हां, यह ध्यान रखें कि दूसरी खुराक के तय समय से बहुत ज्यादा देर न हो। ऐसी स्थिति में पहली डोज के बाद बनी इम्यूनिटी कमजोर पड़ सकती है और शरीर में एंटीबॉडीज को ज्यादा बूस्ट नहीं मिल पाएगा।
दूसरी खुराक के तय समय को कितना और बढ़ाया जा सकता है?
इस सवाल के जवाब में डॉ विक्रमजीत सिंह बताते हैं कि वैक्सीन की दोनों खुराक के बीच का अंतराल 16 हफ्तों से अधिक का नहीं होना चाहिए। दूसरी डोज को बूस्टर डोज माना जाता है, इसलिए इसे लगवाना बेहद जरूरी है। इससे शरीर में पहले से बनीं एंटीबॉडीज को ज्यादा शक्ति मिल पाती है। दूसरी डोज लग जाने के बाद व्यक्ति को वायरस के खिलाफ 90 फीसदी तक सुरक्षित माना जा सकता है।
क्या दोनों खुराक में अलग-अलग वैक्सीन ले सकते हैं?
डॉ विक्रमजीत बताते हैं कि भारत में बनी दोनों वैक्सीन- कोवैक्सीन और कोविशील्ड की कार्यप्रणाली अलग-अलग है, इसलिए दोनों डोज में अलग-अलग वैक्सीन लेने से इसकी प्रभाविकता कम हो सकती है। दोनों डोज में वैक्सीन अलग-अलग होने से आपको वैक्सीन का बूस्टर डोज नहीं मिल पाता है। कोविशील्ड वैक्सीन को वायरस के प्रोटीन स्पाइक के आधार पर तैयार किया गया है वहीं कोवैक्सीन की डोज में कोविड के निष्क्रिय वायरस को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। ऐसे में अगर दोनों डोज में अलग-अलग वैक्सीन दी जाएं तो शरीर को वैक्सीन का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।