जब उम्मीदों को ज़मीन चाहिए होती है, तब कुछ लोग उसे दलदल में धकेल देते हैं। परसदाजोशी और आसपास की दर्जनों महिलाएं उस जाल में फंस गईं, जहां घर बैठे रोज़गार का सपना उन्हें 15 लाख के गड्ढे में धकेल गया।
एक ऐसा फरेबी जो खुद को ‘स्वाभिमान फाउंडेशन’ का प्रतिनिधि बताकर गांव-गांव गया और बोला — "काम मिलेगा, कमाई होगी, मशीन भी देंगे।" मगर असल में वह बेच रहा था सिर्फ झूठ, धोखा और चुप्पी।
औरतें फंसी, ठग जीत गया
42 वर्षीय ममता साहू, जो खुद एक जिम्मेदार गृहिणी हैं, राजिम थाने पहुंचीं और जो बयान उन्होंने दिया, वह सुनकर हर संवेदनशील इंसान सिहर जाएगा। रायपुर के रामकुंड निवासी सत्येन्द्र सोनकर ने साल 2024 में उन्हें फोन किया और झांसा दिया कि अगर वे 4-5 महिलाओं का समूह बनाएं, तो उन्हें अगरबत्ती, पेंसिल, सेनेटरी पैड बनाने का काम मिलेगा।
पर शर्त ये थी — हर समूह को पहले 20 हजार रुपए देने होंगे।
महिलाएं झिझकती रहीं, पर फिर विश्वास कर बैठीं। और यहीं से शुरू हुआ मौन ठग का मायाजाल।
चेन सिस्टम से फैला भरोसे का क़त्ल
यह ठगी केवल एक व्यक्ति से नहीं हुई — यह तो चेन सिस्टम था। एक महिला ने दूसरी को, दूसरी ने तीसरी को जोड़ा। पूरे गांव और आसपास के इलाके में करीब 15 लाख रुपए इस झूठे रोजगार के नाम पर ठग लिए गए।
सत्येन्द्र ने न मशीन भेजी, न सामान, न ही कोई काम। फोन भी बंद हो गया। महिलाएं बस ठगी गईं — और उनके घरों में सिर्फ एक बात गूंजती रही:
"हमसे ये क्या हो गया?"
पुलिस आई मैदान में, आरोपी धरा गया
शुक्र है कि मामला पुलिस तक पहुंचा और राजिम थाना टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को धर दबोचा। सत्येन्द्र सोनकर अब पुलिस की गिरफ्त में है। उसके खिलाफ IPC की कई गंभीर धाराएं, धोखाधड़ी, जालसाजी, षड्यंत्र जैसे आरोप लगे हैं।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक आरोपी से पूछताछ जारी है और यह आशंका है कि वह अंतरराज्यीय ठग गिरोह का सदस्य भी हो सकता है।
चेतावनी: यह केवल ठगी नहीं, यह समाज पर हमला है
महिलाएं जो आत्मनिर्भर बनना चाहती थीं, अब संदेह के साए में जी रही हैं। यह घटना हमें चेतावनी देती है कि:
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कोई संस्था काम के नाम पर पहले पैसे मांगे, तो ठहरिए!
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उस संस्था की वैधता जांचिए।
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बिना दस्तावेज, रसीद और पहचान के कोई भुगतान मत कीजिए।
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पंचायत, जनपद या रोजगार कार्यालय से जानकारी पुख्ता कीजिए।
आखिर में सवाल यह नहीं कि पैसे गए... सवाल यह है कि क्या भरोसा लौटेगा?
यह खबर हर उस महिला के लिए चेतावनी है जो अपने लिए नहीं, अपने बच्चों, अपने परिवार के बेहतर कल के लिए काम करना चाहती है। मगर समाज का एक हिस्सा अब भी इन उम्मीदों की कब्र खुदता है।
अब वक्त है — आवाज़ उठाने का, सतर्क रहने का और अपने अधिकारों की रक्षा करने का।