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प्रशांत भूषण पर हुई सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई 6 महीने तक जेल की सजा का भी प्रावधान

नई दिल्ली । जब कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड यानी उच्च न्याय पालिका की बात आती है, तो उसकी अवामनना करने वाले को ये अदालतें समरी ट्रायल यानी संक्षिप्त सुनवाई के बाद दंडित कर जेल भेज सकती हैं। उस प्रक्रिया या ट्रायल में दंड संहिता सीआरपीसी और न ही दीवानी संहिता आईपीसी के प्रावधानों का कोई उपयोग नहीं है। ये बात रेखांकित कर कोर्ट ने सख्त संदेश देने का प्रयास किया है कि कोर्ट कि गरिमा से जो खिलवाड़ करेगा उसे बख्शा नहीं जाएगा। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने  दिए 108 पन्नों के फैसले में वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराया। कोर्ट ने इसके साथ ही यह स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 129 जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में परिभाषित करता है, स्पष्ट करता है कि ये अदालतें जो संविधान की संरक्षक हैं, अपनी अवमानना के मामलों को खुद समझेंगे और उसके ट्रायल तथा सजा के तरीके को तय करेंगे। अनुच्छेद 142.2 में उन्हें सजा का स्वरूप तय करने की छूट दी गई है, उसमें सीआरपीसी के प्रावधानों का कोई अर्थ नहीं होगा। यहां कोर्ट को सिर्फ इतना ही देखना है कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत यानी अवमानना करने वाले को सुनवाई का मौका और उसे अपने बचाव का अवसर मुहैया करवाया जाए। इस मामले में यही हुआ है। कोर्ट ने कागभग एक माह के अंदर मामले का निपटारा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अवमानना कानूनी 1971 सिर्फ कोर्ट नोटिस जारी करने के बारे में ही बताता है। साथ ही कोर्ट को अपनी अवमानना के मामले में स्वत: संज्ञान के आधार पर या किसी की शिकायत के आधार पर लिए गए संज्ञान में अटॉर्नी जनरल की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। अवमानना रुल 3 में स्पष्ट है कि कोर्ट द्वारा अवमानना कार्यवाही स्वत: संज्ञान के आधार पर शुरू की जा सकती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जबरदस्त चलन और उसकी लगभग हर नागरिकों तक पहुंच ने जहां इसे लोकप्रिय बनाया है, वहीं इसे कानूनी दायरे में भी बहुत अंदर तक ला दिया है। यही वजह है कि वकील के दो ट्वीट जो लॉकडाउन के दौरान किए गए थे, लगभग हर वर्ग तक पहुंचे और जिस तक नहीं पहुंचे उन तक अगले दिन उन्हें अखबारों ने पहुंचा दिया। भूषण का दूसरा ट्वीट जो कोर्ट को महामारी के कारण लॉकडाउन में बंद रखने पर अपातकाल से तुलना रहा था,  कोर्ट ने इस ट्वीट पर ज्यादा आपत्ति की है और कहा है कि आपातकाल को देश की लोकशाही में सबसे काला अध्याय माना जाता है और कोर्ट जो संविधान का संरक्षक है उसे अघोषित अपातकाल लगने वाला बताना बेहद अस्वीकार्य है। कोर्ट ने कहा, "विडंबना ये है कि लॉकडाउन के दौरान ये व्यक्ति वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश भी होते रहा और राहतें लेता रहा।सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीश कुमार मिश्रा ने कहा कि अब प्रशांत को जब सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना में दोषी ठहराया है, इससे साफ हो गया है कि ये व्यावसायिक कदाचार भी है। उन्होंने कहा कि बार काउंसिल को इस पर स्वत: संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट जो सजा देगा वह तो अवमानना की होगी कदाचार की नहीं। इस मामले में प्रशांत भूषण को अधिकतम छह महीने की जेल की सजा या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है। उन्हें कोर्ट में घुसने से भी रोका जा सकता है