नई दिल्ली:15 अगस्त 2020 को देश अपने 74वें स्वतंत्रता दिवस (74th Independence Day) का जश्न मना रहा है. यकीनन आजादी का ये सफर यकीनन सुनहरा रहा है. बीते सालों में भारत ने काफी कुछ हासिल किया है. दुनिया भर में अपनी धाक जमाई है. ऐसे में इस मौके पर आजादी से जुड़े रोचक पहलुओं को समझना भी बेहद जरूरी है. भारत को आजादी भले 15 अगस्त 1947 को मिली हो, लेकिन भारतीयों ने इससे 17 साल पहले ही आजादी मान ली थी. जनवरी 1930 के कांग्रेस (Congress) के लाहौर अधिवेशन में इसे लेकर प्रस्ताव भी पारित हुआ. जानिए 15 अगस्त से जुड़े अनसुने किस्से.
- संविधान सभा की तीसरी बैठक तक ये साफ हो चुका था कि मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल नहीं होगी, जिसके बाद माउटंबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन तय हुआ.
- इंडियन इंडिपेंडेन्स बिल के तहत भारत के विभाजन पर मुहर लगी. ये कानून अपेक्षाकृत काफी छोटा था, जिसमें सिर्फ 20 धाराएं थीं. इसी के साथ भारत में अंग्रेजी हुकुमत के सालों लंबे युग का खात्मा हुआ.
- पहले आजादी 26 जनवरी 1948 को मिलना तय हुआ था, लेकिन देश भर में हो रही सांप्रदायिक हिंसा के चलते फैसला बदलना पड़ा और आजादी के लिए तय हुआ 15 अगस्त 1947 का दिन.
- अंग्रेजों ने 15 अगस्त को इसलिए भी चुना क्योंकि इसी दिन दूसरे विश्व युद्ध में मित्र मुल्कों के सामने जापानी सेना ने घुटने टेके थे.
- 15 अगस्त वाले दिन आजादी के एलान के बाद ज्योतिषियों ने आपत्ति जताई. आजादी के लिए इस दिन को शुभ नहीं माना. लिहाजा तय हुआ कि आजादी का समारोह 14 अगस्त की रात से ही शुरू किया जाए. हुआ भी ऐसा ही.
- संसद के केन्द्रीय कक्ष में आजादी के एलान का भव्य आयोजन हुआ. विशेष तरह की लाइट लगवाई गईं. झंडे लगाए गए. 14 अगस्त की रात को 11 बजे इस ऐतिहासिक कार्यक्रम की शुरूआत हुई, जिसकी शुरूआत वंदे मातरम से हुई.
- कार्यक्रम में सबसे पहले आजादी के लिए होने वाले शहीदों के लिए 2 मिनट का मौन रखा गया, जिसके बाद 3 वक्ताओं ने अपनी बात कही. सबसे पहले कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने सदन में अपनी बात कही. इसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने मशहूर 'नियति से मुलाकात' भाषण दिया. अमूमन माना जाता है कि पं. नेहरू ने ठीक 12 बजे अपना भाषण दिया था. हकीकत इससे अलग है.
- 14—15 अगस्त की उस ऐतिहासिक रात में 12 बजते ही डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने संबोधित किया था. इस मौके पर चौधरी खालिकज्जमा और डॉ राधाकृष्णन ने भी अपनी बात रखी थी. इसी के साथ 14 अगस्त से ही संविधान सभा देश की विधायिका बन गई.
- जब पूरा देश और दुनिया भारत की आजादी का गवाह बन रही थी. सारे बड़े नेता दिल्ली में मौजूद थे तब महात्मा गांधी बंगाल में हो रही साप्रंदायिक हिंसा के विरोध में अनशन कर रहे थे.
- हिंसा से आहत महात्मा गांधी ने रात 12 बजे हुए इस एलान का गवाह बनना भी जरूरी नहीं समझा. उस रात वो 9 बजे ही सोने चले गए.
- बापू का मानना था कि आजादी हिन्दुस्तान को मिली है, कांग्रेस को नहीं. लिहाजा मंत्रिमंडल में सभी दलों के काबिल लोगों को जगह दी जाए. इसी के बाद 15 अगस्त, 1947 की दोपहर में नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन को अपने मंत्रिमंडल की जो सूची सौंपी, उसमें शामिल 13 लोगों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. अम्बेडकर और आर के शणमुखम शेटटी जैसे कांग्रेस विरोधी भी शामिल थे.
- दरअसल में महात्मा गांधी का मानना था कि मंत्रिमंडल का राजनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय चरित्र हो. इस मंत्रिमंडल में सभी धर्मों के साथ—साथ महिला को भी शामिल किया गया था.
- 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराते हैं, लेकिन 1947 में ऐसा नहीं हुआ. तब नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था.