कोविड-19 महामारी से सम्पूर्ण विश्व प्रभावित हैं। इस वर्ष के शुरुआत से ही महामारी का डर मानव जीवन को प्रभावित कर रहा था। फरवरी के मध्य में इटली में हो रहे मौत के वीभत्स आंकड़े आने शुरू हुए तो लोग डरने लगे। मार्च के शुरुआती समय में ही भारत के स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। नागरिकों में संक्रमण का भय बढ़ता ही चला गया, जिससे लोगों के मनोविज्ञान पर नाकारत्मक असर पड़ रहा है। बच्चे 5 महीनों से घर में नजरबंद हैं, जिससे खेलने-कूदने वाले बालमन पर गहरा असर हुआ है।
COVID-19 महामारी का बच्चों और किशोरों के भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में डॉ. शिखा वर्मा बताती हैं कि महामारी ने बच्चों और किशोरों को विशेष रूप से प्रभावित किया है।
डॉ. शिखा एक अनुभवी मनोचिकित्सक हैं, जो बच्चों और किशोरों की मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काम करती हैं। दिल्ली के एक प्रतिष्ठित मेडिकल स्कूल से एमबीबीएस करने के बाद उन्होंने यूएसए में अपनी आगे की ट्रेनिंग पूरी की। अब वह केनकोशा, विस्कॉन्सिन में सात वर्षों से अधिक समय से अभ्यास कर रही हैं। साथ ही शिकागो, इलिनोइस के उपनगरों में रोसलिंड फ्रैंकलिन विश्वविद्यालय में एक सहायक प्रोफेसर भी हैं।
क्या आपने हाल ही में महामारी से प्रभावित रोगियों और उनके परिवारों को देखा है?
हां, मुझे लगता है कि यह महामारी विशेष रूप से बच्चों और किशोरों के लिए बहुत कठिन रही है। उनके नियमित स्कूल शेड्यूल में व्यवधान के कारण बच्चों और उनके माता-पिता दोनों के लिए कई चुनौतियां हैं। ये समस्याएं कोई क्षेत्रीय समस्या नहीं हैं, पूरी दुनिया एक समान इन कठिनाइयों को झेल रही है।
इन बच्चों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
छोटे बच्चों में विघटनकारी व्यवहार, चिड़चिड़ापन, नींद की गड़बड़ी, इत्यादि लक्षण आ रहे हैं क्यूंकि वो उस अज्ञात बीमारी के बारे में चिंता करते रहते हैं जिसे उनका छोटा दिमाग समझ नहीं सकता। थोड़े बड़े बच्चे और किशोर एक नई ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से स्कूल की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इस नयी प्रणाली को आत्मसात करने में तनाव का सामना करना पड़ रहा है। बच्चे अपने दोस्तों से मिलनेमें अक्षम हैं जिसकी वजह से वो आपसी बातों को खुल कर साझा नहीं कर पा रहे। इसके ऊपर इस बीमारी से संक्रमित होने का डर या संक्रमण से बचाव की चिंता में डूबे अपने प्रियजनों को देख बच्चो में भी चिंता, अवसाद, नींद की समस्या, इत्यादि के लक्षण पैदा कर रहे हैं।
कामकाजी या घर में रहने वाले माता-पिता भी अपने काम की उम्मीदों, घर के काम और साथ ही अपने बच्चों की ई-लर्निंग की अतिरिक्त जिम्मेदारियों को निभाने के लिए नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी और अपने परिवारों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने कीकोशिश करने के कारण परिवारों पर वित्तीय तनाव सर्वोपरि है। यह सब परिवारों के लिए तनाव और अवसाद को बढ़ा रहा है।
बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं?
घर में नजरबंद होने से बच्चों की गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। खेल के मैदान बंद है, तैराकी के लिए तरणताल बंद है, नृत्य कक्षायेबंद हैं, और इसी प्रकार के सामूहिक गतिविधि वाले कार्यक्रम बंद है जिससे बच्चों की शारीरिक गतिविधियां न्यनतम हो गयीं है। इससे बच्चों मेंशारीरिक सुस्ती, अत्यधिक वजन बढ़ना और नींद की समस्याओं का जोखिम होता है।
आप माता-पिता को क्या सलाह देंगे?
माता-पिता को अपने बच्चों की देखभाल करने की कोशिश करते समय खुद की देखभाल करने में सक्षम होना चाहिए। इस बढ़ते महामारी के बारे में हालिया घटनाक्रमों पर जानकारी रखना आवश्यक है, परन्तु बहुत अधिक समाचार भी अधिक तनाव का कारण बन सकते हैं। मैं माता-पिता से कहती हूं कि वे केवल विश्वसनीय सरकारी स्रोत से जानकारी लें और दिन में एक या दो बार समाचारों की जांच करने की आवृत्ति रखें। मैं उन्हें पर्याप्त पोषण, हाइड्रेशन और पर्याप्त नींद बनाए रखने की सलाह भी दूंगी। यदि वे बहुत तनावग्रस्त, चिंतित या उदास हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। ऊब और तनाव भी नशीले पदार्थ और शराब के उपभोग में वृद्धि का कारण बन सकते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इस तनावग्रस्त स्तिथि में अपनेस्वास्थ्य पर ध्यान दें और उन तमाम गलत आदतों से दूर रहे जो आपके शरीर और मन को कमजोर कर सकती है।
माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कितनी जानकारी साझा करनी चाहिए?
इस महामारी की वजह से बच्चों के जीवन में आये महत्वपूर्ण बदलाव को समझाने के लिए उन्हें इस महामारी के बारे में बताना ज़रूरी है। अपने बच्चे को यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त ज्ञान दें कि वे सुरक्षित तरीकों को अपनाते हुए खुद को स्वस्थ रखने में सक्षम हो। उन्हें आश्वस्त करने केलिए यह भी आवश्यक है कि आप उन्हें यह भरोसा दिलाएं की आप उनकी देखभाल करने के लिए वहां हैं। अगर बच्चे इस अनिश्चित समय के दौरानस्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे तो वो चिड़चिड़े होने के साथ साथ मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो जायेंगे। यदि माता-पिता महसूस करते हैं कि उनके बच्चे इस लॉकडाउन स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम नहीं हैं, चिंतित होने के बजाय आप मनोचिकित्सक या विशेषज्ञ से बात करेंऔर उनसे सहायता प्राप्त करें।
बच्चों को व्यस्त रखने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
हर घर में इसके अपने तरीके हो सकते हैं और इसका कोई एक सही तरीका नहीं हैं। उज्ज्वल पक्ष को देखना महत्वपूर्ण है। कठिन समय होनेके बावजूद यह माता-पिता के लिए एक स्मरणीय पल है कि वे अपने बच्चों के साथ बहुत समय बिता रहे हैं, जो कि वे साधारणतः अपने व्यस्तकार्यक्रम के कारण नहीं बिता पाते हैं। बच्चों के लिए एक दिनचर्या तय करे और उसका पालन करने के लिए प्रोत्साहित करें। प्रतिदिन स्नान, घर की स्वच्छता बनाए रखना, अच्छे कपडे पहन कर तैयार होना, इत्यादि सभी परिवार के सदस्यों के दिनचर्या में होना चाहिए। ऐसे समय के दौरान, जब बच्चे दोस्तों के साथ घुल-मिल या खेल-कूद नहीं सकते, शाम को उनके लिए कुछ शारीरिक गतिविधियों की योजना बनानी चाहिए जिसका पालन करने सेबच्चों की शारीरिक गतिविधियां चलती रहेंगी और उन्हें पर्याप्त थकान होगी जिससे बिस्तर पर जाते ही उन्हें रात में आराम की नींद आएगी।
तनाव कम करने के कुछ तरीके क्या हो सकते हैं?
मैं तनाव से निपटने के कई तरीके बताती हूं। दिनचर्या को बनाए रखना, स्वस्थ भोजन करना, समय पर सोना और पर्याप्त सोना मूल बातें हैं।इसके साथ एक परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ टहलना चाहिए, चाहे हो घर का छत ही क्यों न हो। वर्तमान में जीने और साकारत्मकमानसिक गतिविधियों में रहने से खुद को और बच्चों को लिए इस आपदा से लड़ने की मानसिक क्षमता विकसित होती है। बच्चों को योग और ध्यानसिखाना बहुत ही आवश्यक हैं और वह उन्हें जीवनभर के लिए उपयोग में आएँगी। सप्ताहांत पर बोर्ड गेम खेलें और खाली समय में उन्हें कला और शिल्प सीखने का अवसर दें।
ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए आप अपने मरीजों को क्या सलाह दे रही हैं?
भले ही लोग इन दिनों एक-दूसरे से नहीं मिल पा रहे हों, लेकिन जुड़े रहने के अन्य तरीके हैं। अपने परिवार और दोस्तों को अक्सर फोन करेंऔर अपने सोच और विचारों का आदान-प्रदान करें। अगर ऑनलाइन लर्निंग का हर पहलू आपके लिए काम नहीं कर रहा है तो स्कूलों और शिक्षकोंसे बात करें। सक्रिय रहें और पर्याप्त रात्रि विश्राम करना सुनिश्चित करें।
बच्चों और किशोरों में इस तरह के लंबे लॉकडाउन का दीर्घकालिक प्रभाव क्या है?
लॉकडाउन शुरू हुए कई महीने हो चुके हैं। बढ़ी हुई निराशा, क्रोध और चिड़चिड़ापन सबसे अधिक देखा जाता है। किशोरों को अपनी शिक्षा और कॉलेज प्रवेश के बारे में बहुत अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है। यह चिंता और अवसाद को बढ़ाने के लिए अग्रणी है। जिन बच्चों कोपहले से ही सामाजिक चिंता थी, सामाजिक अलगाव के महीनों के बाद उन्हें स्कूल सेटिंग्स में वापस लाना उनके सामाजिक चिंता को और भी बदतरबना देता है।
अब छोटे बच्चों और युवाओं में भी कोरोना संक्रमण के कई मामले सामने आए हैं। ऐसे में यह समाचार इन बच्चों को लंबे समय तक मानसिकरूप से कैसे प्रभावित कर सकता है?
शोधकर्ता और वैज्ञानिक अभी भी मानव मस्तिष्क के विकास पर कोरोनोवायरस और इसके दीर्घकालिक प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहेहैं। कोरोना संक्रमण के पश्चात बाल एवं युवा मस्तिष्क और मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर इसके प्रभाव को समझने के लिए और अधिक शोध चल रहा है।