Rabindranath Tagore Death Anniversary: गांधी को 'महात्मा' कहने वाले टैगोर की पुण्यतिथि आज, मिला था साहित्य का नोबेल - Jai Bharat Express

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Rabindranath Tagore Death Anniversary: गांधी को 'महात्मा' कहने वाले टैगोर की पुण्यतिथि आज, मिला था साहित्य का नोबेल

नई दिल्ली: महान रचनाकार रबींद्रनाथ टैगोर की आज 79वीं पुण्यतिथि है. रबींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है. 7 अगस्त 1941 को उन्होंने इस संसार को त्याग दिया. टैगोर एक बहुआयामी प्रतिभा की शख्सियत के मालिक थे. टैगोर ने कविता, साहित्य, दर्शन, नाटक, संगीत और चित्रकारी समेत कई विधाओं में प्रतिभा का परिचय दिया.

महाकाव्य गीतांजलि के लिए टैगोर को साहित्य का नोबेल दिया गया. साहित्य में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय नागरिक हैं. हालांकि, साहित्य के क्षेत्र में रुडयार्ड किपलिंग को भी नोबेल मिला है लेकिन वे जन्मे जरूर भारत में हैं पर मूल रूप से ब्रिटिश हैं.
7 मई 1861 को कोलकाता में टैगोर का जन्म हुआ था. पिता देवेंद्रनाथ टैगोर और मां शारदा देवी को उनसे काफी स्नेह था. वह 13 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद टैगोर ने इंग्लैंड में दाखिला लिया. उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से लॉ (कानूनी शिक्षा) प्राप्त की. हालांकि, डिग्री से पहले वे भारत लौट आए.

गांधी का करते थे सम्मान

टैगोर, महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे. हालांकि, कई बार ऐसा हुआ है जब दोनों के बीच कई विषयों को लेकर अलग राय होती थी. टैगोर का दृष्टिकोण तार्किक ज्यादा होता था. उल्लेखनीय है कि टैगोर ने ही गांधी को महात्मा की उपाधि दी थी.
राष्ट्रगान के रचियता

टैगौर को राष्ट्रगान के रचियता के रूप में भी जाना जाता है. भारत के राष्ट्रगान 'जन गण मन अधिनायक' उन्हीं की रचना है. इतना ही नहीं बांग्लादेश का राष्ट्रगान 'आमार सोनार बांग्ला' भी उन्हीं की रचना है. यहां तक कि श्रीलंका के राष्ट्रगान को भी उनकी कविता से प्रेरित माना जाता है. उन्होंने करीब 2,230 गीतों की रचना की.

रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं हैं- हैमांति, काबुलीवाला, क्षुदिता पश्न, मुसलमानिर गोल्पो. प्रसिद्ध उपन्यास हैं- चतुरंगा, गोरा, नौकादुबी, जोगजोग, घारे बायर. उनकी लिखी गीतांजलि नाम की कविता ने सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल की है. ये उनकी आखिरी रचना थी और गीतांजलि के लिए उन्हें साल 1913 में नोबेल पुरस्कार भी दिया गया. टैगोर नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे.