यहां खेली जाती है 'खूनी होली', एक दूसरे को पत्थर मारकर करते हैं लहूलुहान - Jai Bharat Express

Jai Bharat Express

Jaibharatexpress.com@gmail.com

Breaking

यहां खेली जाती है 'खूनी होली', एक दूसरे को पत्थर मारकर करते हैं लहूलुहान

 


हमारे देश में होली का पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस त्योहार की खासियत यह है कि इसे देश में विभिन्न प्रकार से लोग मनाते हैं। ज्यादातर जगहों पर गुलाल उड़ाया जाता है, तो कहीं सूखी या गीली होली, या फिर लट्ठमार होली और फूलों की होली मनाई जाती है। पर क्या आपको पता है कि राजस्थान में एक जगह है जहां खूनी होली खेली जाती है। जी हां, राजस्थान के डूंगरपुर के वागड़वासियों के लिए यह दिन बहुत खास होता है। यहां होली के रंग में वागड़वासी एक महीने तक रंगे रहते हैं। इस दौरान सदियों से चली आ रही होली के दिन अनूठी परंपरा का निर्वाह करते हैं। एक ऐसी परंपरा जिसे देखकर आपकी रूह कांप जाएगी। जहां आग में जलने का खतरा है। जहां रंगों की नहीं खूनी होली खेली जाती है। हैरान की बात ये हैं, कि सदियों से ये परंपरा आज भी चलती आ रही है। आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में सालों से इसी तरह की अनूठी होली मनाई जाती है। प्राचीन काल से चली आ रही होली की ये परंपरा लोगों को आकर्षित करती है। खतरों के बावजूद आदिवासी बहुल इलाके में ये अऩुठी परंपरा आज भी जिंदा है।

सालों से है अनूठी परंपरा

डूंगरपुर के भीलूडा गांव में धुलंडी पर खुनी होली खेलने की सालों से अनूठी परम्परा है। इसे स्थानीय बोली में राड़ कहा जाता है। परंपरा के नाम पर लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार कर लहूलुहान कर रहे हैं। कोई गुलेल से निशाना लगा रहा हैं तो कोई बड़े पत्थर के टुकड़े से हमले कर रहा हैं। सब का मकसद बस एक ही है। सामने वाले कितना लहुलुहान और घायल होता है। चोट लगनवे और घायल होने के बाद लोग विचलित नहीं होते हैं। इस खूनी खोली का नतीजा ये होता है कि पत्थरों की बौछार से कई लोग घायल हो जाते हैं, जिसे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।

लहुलुहान होने को इस परंपरा में मानते हैं शुभ

सालों से चल रही इस परंपरा से किसी को भी कोई ऐतराज नहीं है बल्कि आपको जानकर ये हैरानी होगी कि होली के मौके पर लहुलुहान होने को इस परंपरा में शुभ मानते हैं। परंपरा के मुताबिक भीलूड़ा और आसपास के गांवों से आए लगभग 400 लोग प्रतिभागी के रूप में स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं। जैसे ही यह खेल शुरू होता है वैसे ही हाथों में पत्थर, गोफन और ढाल लिये ये लोग दो टोलियों में बंट जाते हैं। होरिया के उद्घोष के साथ ही एक दूसरे की टोली पर पत्थर बरसाना प्रारंभ कर देते हैं। जिसे देखने ऊंची जगह पर हजारों लोगों की भीड़ जमा होती है। इस दिन चिकित्सालय में डाक्टरों का एक दल विशेष रूप से इस खेल के लिए ही तैनात रहता है।

जलती होलिका पर चलने की भी है परंपरा

दहकते अंगारों पर अगर गलती से पैर पड़ जाए तो लोगों की चीखें निकल जाती हैं, लेकिन डूंगरपुर के कोकापुर गांव में होली के मौके पर जलती होलिका पर चलने की परंपरा है। लोग दहकते अंगारे और शोलों के बीच नंगे पांव चलकर सदियों से चली आ रही परंपराओं का निर्वाह कर उत्साह मनाते हैं। मान्यता है कि दहकते अंगारों पर चलने से गांव पर कोई विपदा नहीं आती। वहीं, हजारों की संख्या में लोग पारम्परिक वेश भूषा में ढोल और कुण्डी की थाप पर होली के लोक गीतों पर गेर खेलते हैं।