प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का covid-19 के बाद शुक्रवार को निधन हो गया है. सुंदरलाल बहुगुणा का ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में कोविड -19 का इलाज चल रहा था. सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे और वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया पर उनके निधन की खबर दी. 8 मई राजीव ने फेसबुक पर लिखा ''अभी अभी पिता को aiims ऋषिकेश में भर्ती कराया हूं. जांचें चल रही हैं.'' एक अनपढ़ मनुष्य की मूर्खता, धूर्तता , लिप्सा एवं क्रूरता की सज़ा पूरा देश भुगतने को अभिशप्त है. इतिहास की देवी अपनी इच्छाएं पूर्ण करें. सभी सतर्क एवं सुरक्षित रहें मित्रो. मैं मंसूर का कथन नए सन्दर्भों में दोहराता हूं कि एक विचित्र चोर हम सबके कपड़े , खाद्य , दवाइयां ऑक्सीजन सिलेंडर और मास्क लेकर कहीं छुप गया है.''
पर्यावरण कार्यकर्ता बहुगुणा ने अपना जीवन जंगलों और हिमालय के पहाड़ों के विनाश के विरोध में ग्रामीणों को समझाने और शिक्षित करने में बिताया. यह उन्ही प्रयास था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगा दिया. बहुगुणा को 'इकोलॉजी स्थायी अर्थव्यवस्था है' के नारे के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है.
चिपको आंदोलन (Chipko Movement) की अगुवाई करने वाले के 94 वर्षीय बहुगुणा को ऑक्सीजन के स्तर में उतार-चढ़ाव शुरू होने के बाद 9 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक अस्पताल में दाखिल होने के 10 दिन पहले से ही उन्हें कोविड जैसे लक्षण थे.
सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया. उन्हें चिपको आंदोलन की स्थापना के लिए श्रेय दिया गया था. 1970 के दशक में गढ़वाल क्षेत्र में जमीनी स्तर पर चलने वाला आंदोलन, जिसमें ग्रामीणों ने पेड़ों को काटने से रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाया था. बाद में 1990 के दशक में उन्होंने टिहरी बांध विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया और 1995 में इसके लिए जेल भी गए.
चिपको आंदोलन 1973 में एक अहिंसक आंदोलन था जिसका उद्देश्य पेड़ों की सुरक्षा और संरक्षण करना था. इस आंदोलन को वनों के संरक्षण के लिए महिलाओं की सामूहिक लामबंदी के लिए याद किया जाता है, जिससे दृष्टिकोण में भी बदलाव आया. 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले में शुरू हुआ और कुछ ही समय में उत्तर भारत के अन्य राज्यों में फैल गया.