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न्याय की डगर पर गंगा पाठक: सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक, आदिवासी ज़मीन मामले में राहत की सांस


जबलपुर के चर्चित आदिवासी ज़मीन प्रकरण में वरिष्ठ पत्रकार गंगा पाठक और उनकी पत्नी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने दोनों की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाते हुए अगली सुनवाई तक उन्हें संरक्षण प्रदान किया है। यह फैसला उस समय आया है जब ज़िला प्रशासन और पुलिस पर लगातार यह आरोप लग रहे थे कि वे एक खामोश लेकिन सुनियोजित प्रतिशोध की रणनीति पर काम कर रहे हैं।


क्या है मामला? एक सघन पड़ताल...

गंगा पाठक और उनकी पत्नी पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे आदिवासी भूमि पर कब्ज़ा किया। जबलपुर के तिलवारा और बरगी थानों में उनके खिलाफ दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज हैं। इन एफआईआर में गंभीर धाराएं लगाई गई हैं:

धारा 419 (भेष बदलकर धोखा),

धारा 420 (धोखाधड़ी),

धारा 467/468/471 (दस्तावेजों में जालसाजी),

और SC/ST एक्ट की धाराएं, जो प्रकरण को और अधिक संवेदनशील बना देती हैं।


सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि और संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि गिरफ्तारी से पहले विचार और परिपक्वता आवश्यक है, खासकर तब जब आरोपी खुद पत्रकार हैं और उन्होंने प्रशासनिक अनियमितताओं को उजागर किया है। कोर्ट ने फिलहाल उनकी गिरफ्तारी पर स्टे लगा दी है और अगली सुनवाई अगस्त में निर्धारित की है।


पत्रकारिता बनाम प्रतिशोध?

गंगा पाठक का दावा है कि यह पूरा मामला प्रशासन की ‘बदले की भावना’ से प्रेरित है। उन्होंने कहा:

“मैंने ज़िला प्रशासन की ज़मीन से जुड़े भ्रष्टाचार को सामने लाया है। जिनके चेहरे बेनकाब हुए, वे अब मुझे और मेरे परिवार को कानूनी शिकंजे में फँसाना चाहते हैं।”

पाठक का यह बयान केवल व्यक्तिगत बचाव नहीं है, बल्कि यह पूरे पत्रकारिता जगत के लिए सवालों की बौछार भी है ....
क्या सच्चाई को उजागर करना आजकल सज़ा का सबब बन गया है?

कानूनी दृष्टिकोण: अगली सुनवाई पर टिकी निगाहें

सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई में तय होगा कि यह अंतरिम राहत स्थायी ज़मानत या निरसन की ओर बढ़ती है या नहीं। अगर अदालत को प्रथम दृष्टया अपराध की पुष्टि नहीं होती, तो यह मामला आने वाले समय में राजनीतिक और मीडिया स्वतंत्रता के विमर्श में शामिल हो सकता है।


न्याय और पत्रकारिता के बीच खड़ा एक नाम: गंगा पाठक

गंगा पाठक का मामला अब केवल एक जमीन विवाद नहीं, बल्कि एक प्रेस की स्वतंत्रता और प्रशासनिक जवाबदेही का आईना बन चुका है।

अगस्त में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तय करेगा कि यह पत्रकार न्याय की राह पर आगे बढ़ता है या उसे कानून के मकड़जाल में उलझा दिया जाता