‘कचरा गाड़ी’ अब "इंदौर का ऑर्केस्ट्रा" बन चुकी है। यह कहानी किसी प्रचार एजेंसी की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि एक साहसिक विचार की बुनियाद है — जब देवरिषि और पी. नरहरि ने ‘हो हल्ला’ को सड़कों की आवाज़ बनाया।
पाँच दिन के प्रयोग ने साबित कर दिया कि संगीत शासन का औजार बन सकता है।
आज जब लोग "हल्ला बोल" या "चौका" पर गरबा करते हैं, तो यह केवल उत्सव नहीं — जनभागीदा
री की नई परिभाषा है।
इंदौर ने साबित किया: "अगर आप जनता के दिल में उतर गए, तो कचरे से भी क्रांति शुरू हो सकती है।"