हादसे के बाद का सबसे बड़ा सवाल यह नहीं है कि बोलेरो कैसे टकराई, बल्कि यह है कि घायलों को वक्त पर इलाज क्यों नहीं मिला? क्या हमारे सड़क सुरक्षा और आपदा प्रबंधन तंत्र में इतनी भी तत्परता नहीं कि मासूम बच्चों की जान बचाई जा सके?
हादसे के बाद बोलेरो के दरवाजे काटकर शव निकाले गए। दो लोग — हिमांशी और देवा — गंभीर रूप से घायल हैं और उन्हें अलीगढ़ रेफर किया गया है, लेकिन स्थानीयों का कहना है कि अगर शुरुआती 30 मिनट में प्राथमिक चिकित्सा मिल जाती, तो शायद कुछ जिंदगियां बचाई जा सकती थीं।
क्या इस रफ्तार के पीछे सिर्फ चालक की गलती थी? या सिस्टम की ढिलाई भी उतनी ही जिम्मेदार है? स्थानीय प्रशासन के पास जवाब नहीं है।
एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई का बयान है कि हादसा ‘चालक की लापरवाही’ से हुआ। लेकिन सवाल उठता है: क्या सिर्फ ड्राइवर दोषी है या वो सड़कें, जिनपर कोई स्पीड ब्रेकर नहीं, कोई संकेत नहीं?