मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के जरिये कोटवारों की सेवाभूमि को नजूल भूमि के रूप में दर्ज किए जाने पर रोक लगा दी है। इसी के साथ- साथ राज्य शासन प्रमुख सचिव राजस्व कलेक्टर सागर, एसडीएम व तहसीलदार गढ़ा-कोटा सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया। इसके लिए 04 सप्ताह का समय दिया गया है, न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता गढ़ा-कोटा निवासी कोटवार प्रताप नारायण चड़ार, लखन चड़ार, भगोनी चड़ार व बलराम चड़ार की ओर से अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा ने पक्ष रखा।
03 साल बाद मनमाने तरीके से आदेश किया लागू
उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता पैतृक रूप से कोटवार हैं। अंग्रेजों के जमाने में मालगुजारी प्रथा लागू थी। उस समय उन्हें सेवाभूमि बतौर कृषि भूमि प्रदान की गई थी। उसका इस्तेमाल आजीविका के लिए किया जा रहा है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी सेवाभूमि वंशजों को मिलती आई है। इसके बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से मानमानी करते हुए सेवाभूमि को नजूल भूमि में दर्ज करने की तैयारी है। इसके लिए समय-समय पर प्रयास किए गए। लेकिन कोटवार जागरूक रहे और विरोध किया। इस वजह से उनकी सेवाभूमि बची रही। मध्य प्रदेश शासन ने 28 फरवरी, 2017 को एक परिपत्र जारी किया। इसका लंबे समय तक परिपालन नदारद रहा। तीन साल बाद 25 सितंबर, 2020 को एसडीएम ने तहसील गढ़ा-कोटा के कोटवारों की सेवाभूमि को शासकीय नजूल भूमि घोषित करके जप्त करने का आदेश जारी कर दिया। इस वजह से चारों याचिकाकर्ता असंतुष्ट होकर हाई कोर्ट चले आए। उनकी मुख्य मांग यही है कि सेवाभूमि को नजूल भूमि घोषित करने पर अंतरिम रोक लगाई जाए। साथ ही मानमानी कार्रवाई को शून्य घोषित करके इंसाफ प्रदान किया जाए।