जनसुनवाई में दिये आवेदन ने लौटाई खुशियां,जबरन कब्जा कर मालिकाना हक जता रहे किरायेदार को खाली करना पड़ा विधवा का मकान
कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी को जबरन कब्जा करके बैठे किरायेदार नीरज साहू से अपना मकान खाली कराने का विधवा महिला ने आवेदन दिया था।
जबलपुर |विधवा महिला के मकान पर जबरन कब्जा कर मालिकाना हक जता रहे किरायेदार को आज मकान खाली करना पड़ा,कलेक्टर कार्यालय में हर मंगलवार को आयोजित की जा रही जनसुनवाई ने एक विधवा महिला को उसके मकान का कब्जा वापस दिलाकर जीवन भर की खुशियां लौटा दी। किरायेदार द्वारा घर पर जबरन कब्जा करने की शिकायत लेकर जनसुनवाई में पहुंची इस वृद्ध महिला को कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी द्वारा दिखाई गई संवेदनशीलता से अपने मकान का मालिकाना हक वापस मिल गया।
टिकरीटोला, छुई खदान, रानी दुर्गावती वार्ड गढ़ा निवासी इस 65 वर्षीय विधवा श्रीमती देवकी बाई विश्वकर्मा ने जून माह में आयोजित जनसुनवाई में कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी को जबरन कब्जा करके बैठे किरायेदार नीरज साहू से अपना मकान खाली कराने का आवेदन दिया था। देवकी बाई ने आवेदन में बताया कि उसके पति का स्वर्गवास हो गया है और उसका पुत्र मानसिक दिव्यांग है। कुछ वर्ष पूर्व नीरज साहू ने अपनी खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए उससे मकान का एक हिस्सा किराये पर लिया था। बाद में नीरज और उसकी पत्नी मकान पर मालिकाना हक जताने लगे और उसे ही मकान खाली कर कहीं और चले जाने के लिए धमकाने लगे।
कलेक्टर ने विधवा देवकी बाई की व्यथा को धैर्य पूर्वक सुनकर उसके आवेदन को तत्काल एसडीएम गोरखपुर दिव्या अवस्थी को भेजा और उसके मकान से किरायेदार बेदखल करने की कार्यवाही करने के निर्देश दिये। एसडीएम दिव्या अवस्थी ने कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी के निर्देश पर विधवा को राहत दिलाने में देर नहीं की। उन्होंने मध्यप्रदेश स्थान नियंत्रण (रेंट कंट्रोल) अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर 27 जून को पहली सुनवाई में ही किरायेदार को मकान खाली करने का आदेश पारित किया।
एसडीएम गोरखपुर के आदेश को लेकर नीरज साहू ने उच्च न्यायालय में अपील की। करीब दो माह तक इस मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने भी एसडीएम गोरखपुर के आदेश पर मुहर लगाकर नीरज साहू से देवकीबाई का मकान खाली कराने का आदेश पारित किया। उच्च न्यायालय के आदेश के पालन में आज बुधवार को तहसीलदार गोरखपुर अनूप श्रीवास्तव द्वारा नीरज साहू को बेदखल कर मकान का कब्जा देवकीबाई और उसके दिव्यांग पुत्र रवि विश्वकर्मा को वापस सौंप दिया गया।