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सागर की रात में मौत का सन्नाटा: एक ही परिवार के चार लोगों की सामूहिक आत्महत्या ने झकझोरा प्रदेश

 मध्य प्रदेश का सागर ज़िला शनिवार की सुबह उस ख़बर से थर्रा गया, जिसने पूरे इलाके को सन्न कर दिया। जिले के खुरई थाना क्षेत्र अंतर्गत छोटे से गांव टीहर में एक ही परिवार के चार सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली। खेत के एकांत में बने घर में यह मौतें उस रात की गवाही बन गईं, जब ज़िंदगी ने खामोशी से दम तोड़ दिया और पूरा गांव अगले दिन तक शोक की चादर में लिपट गया।

यह केवल एक आत्महत्या की खबर नहीं है, यह उस सामाजिक-मानसिक संकट की आहट है, जिसकी अनदेखी हमें आज इतने विकराल परिणामों की ओर ले जा रही है।

भयावह रात: जब मौत परिवार के चारों ओर मँडराने लगी

शुक्रवार की रात करीब 1 बजे मनोहर लोधी का भाई नंदराम, जो मकान की ऊपरी मंजिल पर रहता था, अचानक कुछ अजीब सी आवाज़ों से चौंक गया। आवाज़ें कुछ इस तरह की थीं जैसे कोई तड़प रहा हो, घुटी-घुटी आवाज़ें, और फिर उल्टियों की सनसनीखेज़ आवाजें। जब वह नीचे पहुंचा, तो आँखों के सामने जो दृश्य था, वह किसी खौफनाक सपने से कम नहीं था।

नीचे घर के आंगन में उसकी मां फूलरानी (70), भाई मनोहर (45), भतीजी शिवानी (18) और भतीजा अनिकेत (16) ज़मीन पर पड़े थे, सभी के मुंह से झाग निकल रहा था। सभी चारों शरीर कांप रहे थे, तड़प रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उन्होंने कोई ज़हरीली चीज़ खाई हो।

गांव की नींद टूटी, चीखें गूंजीं, लेकिन मौत तेज़ निकली

नंदराम ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और आसपास के ग्रामीणों को बुलाया। गांव के कुछ नौजवानों ने जीप और बाइक के सहारे चारों को खुरई अस्पताल ले जाने की कोशिश की। लेकिन किस्मत ने जैसे पहले ही विदाई लिख दी थी। अस्पताल पहुंचने से पहले ही मां फूलरानी और अनिकेत ने दम तोड़ दिया। शिवानी ने रास्ते में दम तोड़ा और मनोहर की भी ज़िंदगी अस्पताल में कुछ ही मिनटों में समाप्त हो गई।

"सुसाइड नोट नहीं, कोई लड़ाई नहीं, न कोई आर्थिक परेशानी": पर क्यों गए सभी?

पुलिस को घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। न ही किसी परिजन या पड़ोसी ने इस परिवार में किसी झगड़े या विवाद की पुष्टि की है। नंदराम लोधी, जो खुद इस परिवार का हिस्सा हैं, बार-बार बस एक ही बात दोहरा रहे हैं — “सब कुछ ठीक था... सब कुछ सामान्य था... फिर यह क्यों हुआ?”

गांव वाले बताते हैं कि मनोहर मेहनती किसान था, जमीन थी, उपज थी, कोई कर्ज नहीं था, कोई दुश्मनी नहीं थी। बेटी कॉलेज जाती थी, बेटा पढ़ाई में तेज़ था। मां की तबीयत थोड़ी उम्र के कारण ढीली रहती थी, लेकिन हालात सामान्य थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि पूरा परिवार आत्महत्या कर बैठा?

परिवार की चुप्पी बनी मौत का कारण? क्या यह मानसिक स्वास्थ्य का मामला है?

मनोहर की पत्नी इस समय अपने मायके में हैं। वह इस त्रासदी से पूरी तरह अनभिज्ञ थीं। पुलिस ने जब उन्हें फोन पर घटना की जानकारी दी, तो वह अवाक रह गईं। ग्रामीणों ने बताया कि परिवार पूरी तरह घरेलू किस्म का था, बहुत ज़्यादा मेलजोल भी नहीं करता था।

यहीं से एक सवाल जन्म लेता है – क्या परिवार किसी मानसिक तनाव से गुजर रहा था? क्या कोई ऐसा पारिवारिक अवसाद या दबाव था, जिसकी भनक तक बाहर नहीं लगी? या फिर यह किसी योजना के तहत की गई सामूहिक आत्महत्या थी?

पुलिस जांच के कई एंगल: हत्या की आशंका भी नकारा नहीं गया

हालांकि प्रारंभिक जांच इसे आत्महत्या का मामला मान रही है, लेकिन पुलिस हत्या के एंगल को भी नजरअंदाज नहीं कर रही। सागर के पुलिस अधीक्षक ने विशेष टीम गठित कर दी है, जो परिवार के मोबाइल फोन, कॉल रिकॉर्ड्स, सोशल मीडिया और आर्थिक लेन-देन की जांच कर रही है।

पुलिस अधीक्षक का बयान:

“यह एक बेहद संवेदनशील मामला है। हमने हर पहलू से जांच शुरू कर दी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मौत का कारण स्पष्ट होगा। सुसाइड नोट न होना जांच को और पेचीदा बना रहा है।”

ग्रामीण भयभीत, प्रशासन पर भरोसा चाहते हैं लोग

टीहर गांव में इस घटना के बाद गहरा मातम पसरा हुआ है। ग्रामीणों की आँखों में शोक, भय और चिंता तीनों दिखाई दे रहे हैं। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि ऐसी घटना उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी। बच्चे डरे हुए हैं, महिलाएं रो रही हैं, और प्रशासन से लोग सिर्फ एक बात कह रहे हैं — “सच्चाई सामने लाइए।”

क्या कहता है समाजशास्त्र? यह आत्महत्या नहीं, सामाजिक चेतावनी है

मानव व्यवहार औ


र समाज पर काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी सामूहिक आत्महत्याएं केवल व्यक्तिगत घटनाएं नहीं होतीं, ये उस सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक ताने-बाने के टूटने की निशानी होती हैं, जिसे अक्सर हम ‘सब कुछ ठीक है’ कहकर अनदेखा कर देते हैं।

यह केवल चार मौतें नहीं, यह समाज का एक मौन विलाप है

टीहर गांव की यह घटना उस समाज को आईना दिखा रही है, जहां चुप्पी भीतर ही भीतर ज़हर बनती जाती है। चार जिंदगियों का यूँ एक साथ चले जाना किसी हादसे से कम नहीं। सवाल यह नहीं कि आत्महत्या क्यों की — सवाल यह है कि हमने समय रहते उनकी पीड़ा को क्यों नहीं समझा?