अदालत ने कहा केवल धारणा और नैतिक सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते इसके लिए ठोस सबूत होने चाहिए।
मालेगांव धमाके में मारे गए 6 मुसलमानों की हत्या का जिम्मेदार कौन 👇🏻👇🏻
कोर्ट ने आदेश दिया कि विस्फोट के सभी पीड़ित परिवारों को 2-2 लाख और सभी घायलों को 50,000 रुपये मुआवजे के रूप में दिए जाएं।
विश्व हिंदू परिषद ने क्या कहा 👇🏻👇🏻
महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA स्पेशल कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। इस केस में 7 मुख्य आरोपी थे। इनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी शामिल थे। पीड़ितों के वकील शाहिद नवीन अंसारी ने कहा- हम एनआईए कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे।
ये फैसला है..न्याय नहीं है मालेगांव ब्लास्ट फैसले पर राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी 👇🏻👇🏻
NIA कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित के अलावा मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय रहीरकर, सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ शंकराचार्य और समीर कुलकर्णी को भी अदालत ने दोष मुक्त कर दिया है।
29 सितंबर, 2008 को रमजान के महीने में मुस्लिम बहुल इलाके मालेगांव के भीकू चौक में बम धमाका हुआ था। इसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हो गए थे।
न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने आदेश दिया है कि विस्फोट के सभी छह पीड़ित परिवारों को 2-2 लाख और सभी घायलों को 50,000 रुपये मुआवजे के रूप में दिए जाएं। एनआईए कोर्ट ने आरोपियों को UAPA आर्म्स एक्ट से भी बरी कर दिया।
क्या है मालेगांव ब्लास्ट मामला
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ. इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए. शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी. हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई. 2016 में एनआईए ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कई अन्य आरोपियों को बरी करते हुए एक आरोप पत्र दाखिल किया था. घटना के लगभग 17 साल बाद आए इस फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था।
साध्वी प्रज्ञा पर क्या बोला कोर्ट
साध्वी प्रज्ञा के वाहन की मालिकाना हक या कब्जे को लेकर कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फरीदाबाद, भोपाल आदि में हुई कथित षडयंत्रकारी बैठकों का कोई प्रमाण नहीं मिला. न ही कोई साजिश या बैठकें साबित हो सकीं. अदालत ने अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने कहा था कि अप्रैल में सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन मामले में एक लाख से अधिक पन्नों के सबूत और दस्तावेज होने के कारण, फैसला सुनाने से पहले सभी रिकॉर्ड की जांच के लिए अतिरिक्त समय चाहिए
कोर्ट ने दी थी चेतावनी
सभी आरोपियों को फैसले के दिन कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया गया था. कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी थी है कि जो आरोपी उस दिन अनुपस्थित रहेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इस मामले में सात लोग, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं, जिन पर मुकदमा चला. इन सभी लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता
एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं कर सकता। अदालत केवल धारणा और नैतिक सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती; इसके लिए ठोस सबूत होने चाहिए।
अदालत ने कहा अभियोजन पक्ष ने यह तो साबित कर दिया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ था लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि उस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था। अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि घायलों की संख्या 101 नहीं, बल्कि 95 साल थी और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी।
एनआईए कोर्ट ने कहा, हमने एडीजी ATS को आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में विस्फोटक रखने के मामले की जांच शुरू करने का आदेश दिया है। अभियोजन पक्ष की दलील थी कि चतुर्वेदी के देवलाली स्थित आवास पर RDX मिला था और इसे लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के निर्देशों पर तैयार किया गया था।
फैसले को हाई कोर्ट में देंगे चुनौती
पीड़ित परिवारों के वकील एडवोकेट शाहिद नदीम ने कहा है कि हम इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि अदालत ने यह माना कि बम विस्फोट हुआ था।
मामले में क्या थे आरोप?
इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को अक्टूबर, 2008 में गिरफ्तार किया गया था। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर आरोप था कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल उनके नाम पर रजिस्टर्ड थी। NIA की ओर से अदालत में पेश हुए स्पेशल प्रॉसीक्यूटर अविनाश रसाल ने कई सबूतों का हवाला दिया, जिनमें कॉल डेटा रिकॉर्ड, इंटरसेप्ट की गई फोन कॉल और आरोपियों से बरामद सामग्री शामिल थी।