पितृ पक्ष का प्रारंभ : जानिए इस दिन का विशेष महत्व और ध्यान देने वाली सभी बातें - Jai Bharat Express

Jai Bharat Express

Jaibharatexpress.com@gmail.com

Breaking

पितृ पक्ष का प्रारंभ : जानिए इस दिन का विशेष महत्व और ध्यान देने वाली सभी बातें




हिंदू धर्म में अनेकों रीति-रिवाज, व्रत-त्यौहार, और परंपराएं मनाई जाती हैं। हिंदुओं में किसी भी इंसान के जन्म लेने से लेकर उसकी मृत्यु तक अनेकों प्रकार के रीति-रिवाज़ों का पालन किए जाने की मान्यताएं हैं। इंसान के अंत्येष्टि को उसका अंतिम संस्कार माना गया है लेकिन, अंतिम संस्कार के बाद भी कुछ ऐसे काम होते हैं, जिन्हें मृतक के परिवार के लोग करते हैं, जिससे मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिल सके।

श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक काम माना गया है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार यूँ तो हर माह की अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है लेकिन, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध समय करने और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए निर्धारित किया गया है। इस समय के दौरान लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं, जिससे हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इसको ही पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है।

पितृ पक्ष 2020
1 से 17 सितंबर
पूर्णिमा श्राद्ध – 1 सितंबर 2020
सर्वपितृ अमावस्या – 17 सितंबर 2020


पितृ पक्ष का महत्व 

पौराणिक कथाओं के अनुसार किसी भी पूजा से पहले इंसानों को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि अगर आपके पितृ आपसे प्रसन्न होते हैं तो देवता भी अवश्य प्रसन्न होते हैं। यही वजह है कि हिन्दू धर्म के अनुसार जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान और उनकी मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म किए जाने का बेहद महत्व बताया गया है। माना जाता है कि अगर विधि अनुसार किसी पितृ का तर्पण ना किया जाए तो उन्हें मृत्यु के बाद भी मुक्ति नहीं मिलती है, और उनकी आत्मा मृत्यु लोक में इधर-उधर भटकती रहती है।

पितृपक्ष का ज्योतिषीय कारण 

ज्योतिष शास्त्र में भी पितरो को मान्यता दी गयी है, क्योंकि ज्योतिष कर्म और पूर्व जन्म की अवधारणा को मानता है। हमारे पूर्व संचित कर्मों के आधार पर हमारे वर्तमान जीवन और भविष्य का निर्धारण होता है। कुंडली में विशेष गृह-योग संयोग होने पर पितृ दोष निर्मित होता है, जो जीवन भर कष्ट दे सकता है। कहते हैं जब कोई जातक किसी सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता है या उसके बेहद नज़दीक पहुँचकर भी सफलता से वांछित रह जाता है, संतान उत्पत्ति को लेकर उनके जीवन में परेशानी आ रही होती है, उनको बार-बार धन की हानि हो रही हो दाम्पत्य जीवन में तनाव हो तो ऐसी प्रबल संभावना होती है कि उस जातक की कुंडली में पितृदोष उपस्थित हो सकता है। ऐसी स्थिति में एक ज्योतिषी व्यक्ति को पितृ दोष की शांति करने का उपाय बताता है। उन उपायों को करने के लिए पितृ पक्ष सबसे शुभ और महत्वपूर्ण समय माना जाता है। 
वैदिक ज्योतिष के हिसाब से जिस दिन कन्या राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं, उसी दौरान पितृ-पक्ष मनाये जाने की मान्यता होती है। कुंडली का पंचम भाव इंसान के पूर्व जन्म में किये गए कामों को दर्शाता है। इसके अलावा काल पुरुष की कुंडली में सूर्य को पंचम भाव का स्वामी माना जाता है। यही वजह है कि सूर्य को हमारे कुल का द्योतक भी माना गया है।
कन्यागते सवितरि पितरौ यान्ति वै सुतान,
अमावस्या दिने प्राप्ते गृहद्वारं समाश्रिता:
श्रद्धाभावे स्वभवनं शापं दत्वा ब्रजन्ति ते॥
अर्थात : जब कन्या राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं तब सभी पितृ अपने पुत्र- पौत्रों (पोतों) यानि कि अपने वंशजों के घर पधारते हैं। ऐसे में यदि आश्विन अमावास्या जो की पितृपक्ष के दौरान आती है, उस दिन इनका श्राद्ध नहीं किया जाये तो हमारे पितृ दुखी होकर और अपने वंशजों को श्राप देकर वापस अपने लोक को लौट जाते हैं। इसी वजह से इस दौरान अपनी यथासामर्थ उन्हें फूल फल और जल आदि के मिश्रण से तर्पण देना चाहिए और उनकी प्रशंसा और तृप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।

पितृ पक्ष: ध्यान रखें यह ज़रूरी बातें 

वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जा सकता है लेकिन पितृपक्ष में श्राद्ध करने का अलग ही महत्व बताया गया है। पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए। हालांकि अगर आपको अपने पितृ की पुण्यतिथि के बारे में सही-सही जानकारी नहीं हो तो आश्विनी अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है।
इसके अलावा अगर किसी इंसान की मृत्यु समय से पहले जैसे किसी दुर्घटना या सुसाइड की वजह से अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। पिता के श्राद्ध के लिए अष्टमी तिथि चुनी गई है, और माता की श्राद्ध के लिए नवमी तिथि निर्धारित की गई है। 

पितृ पक्ष में पितरों की शांति के लिए कैसे किया जाता है श्राद्ध।

श्राद्ध कर्म ऐसे कर्म को कहा जाता है जिसमें परिवार के दिवंगत व्यक्तियों के लिए लोग श्रद्धा प्रकट करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ इत्यादि करते हैं। पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक श्राद्ध किया जाता है। 

श्राद्ध करने की विधि 

अब सवाल उठता है कि कैसे श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष की प्राप्ति की कामना के लिए उनके लिए श्राद्ध करना बेहद आवश्यक माना गया है। इसके लिए श्राद्ध करने की एक विधि निर्धारित की गई है। अगर पूरे विधि विधान से श्राद्ध किया जाता है तो पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारे पूर्वजों की आत्मा आजीवन अतृप्त रहती है। मान्यता है कि श्राद्ध कर्म किसी विद्वान ब्राह्मण के हाथों ही करवाना चाहिए।
इसके अलावा इस दौरान अगर आप किसी गरीब, या किसी ज़रूरतमंद की सहायता भी कर सकें तो उससे भी बहुत पुण्य मिलता है। श्राद्ध के लिए बनने वाले खाने को कुत्तों को, कौवों को, गाय को, और अन्य पशु-पक्षियों में भी अवश्य खिलाना चाहिए। श्राद्ध करने के लिए मृतक की पुण्यतिथि का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई होती है उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है। 
कभी-कभी हमें तिथि का ज्ञान नहीं होता है, ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म किया जाना निर्धारित किया गया है, क्योंकि इस दिन को सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। श्राद्ध कर्म करने वाले दिन व्रत रखना चाहिए, और खीर आदि पकवानों से ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए।

श्राद्ध की पूजा दोपहर के समय शुरू की जानी चाहिए। 

इस दिन हवन किया जाता है। 

योग्य ब्राह्मण की मदद से मंत्र उच्चारण और पूजा की जाती है। 

इसके बाद जो भी पकवान भोग लगाया जाना है उसमें से एक हिस्सा गाय, काले कुत्ते, कौवे आदि को दिया जाता है। 

इस दौरान आपको अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। 

इसके बाद ब्राह्मण देवता को भोज करवाना चाहिए और भोजन के बाद उन्हें दान दक्षिणा भी देना चाहिए।

मान्यता है कि इस तरह से विधि विधान से जो भी श्राद्ध पूजा करता है उस जातक को पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही इस बात से प्रसन्न होकर पितृ आपके घर परिवार को जीवन में सुख-समृद्धि और ख़ुशियों का आशीर्वाद भी देते हैं।

पितृपक्ष के दौरान क्या करें और क्या ना करें

हिंदू संस्कृति में पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा और पिंड दान का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने पुत्र-पौत्रों को सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष के दौरान ध्यान रखें ये बातें

पितृपक्ष के बारे में ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों की अवधि में सभी पूर्वज अपने पुत्र-पौत्रों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस तरह तर्पण, श्राद्ध, और पिंडदान इत्यादि किया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जो लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान नहीं करते हैं उन्हें  पितृ दोष और पितृ ऋण जैसे दोषों का सामना करना पड़ता है।

श्राद्ध कर्म के अनुष्ठान में परिवार का सबसे बड़ा सदस्य अवश्य शामिल होना चाहिए। 

पितरों का श्राद्ध करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहन लें।

इसके बाद कुश घास से बनी अंगूठी धारण करें। 

पिंडदान के एक भाग के रूप में जौ के आटे, तिल, और चावल से बने एक गोलाकार पिंड को भेंट करें।

पूर्वजों के श्राद्ध के लिए जो भी भोजन तैयार किया जाता है उसे कौवा को भी अर्पित करें, क्योंकि कौवों को यम देवता का दूत माना गया है। 

इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन अर्पित करें।

पितृ पक्ष मंत्र का जाप करें। “ये बान्धवा बान्धवा वा ये नजन्मनी बान्धवा” ते तृप्तिमखिला यन्तुं यश्र्छमतत्तो अलवक्ष्छति। ”

श्राद्ध पक्ष के दौरान भूल से भी ना करें ये काम 

हिंदू धर्म में श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम वर्जित बताया गया है। 

इस दौरान कोई भी नया वाहन या सामान नहीं खरीदना चाहिए। 

इसके अलावा इस दौरान मांसाहारी भोजन, शराब, तंबाकू, धूम्रपान, इत्यादि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। 

श्राद्ध कर्म करने वाले इंसान को अपने नाखून नहीं काटने चाहिए। इसके अलावा उन्हें इस दौरान अपने दाढ़ी और बाल भी नहीं बनाने चाहिए। 

ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं इसलिए इस दौरान अगर आपके दरवाज़े पर कोई भी पशु या पक्षी या इंसान आता है तो भूल से भी उसका अनादर ना करें बल्कि, उन्हें भोजन कराएं और सम्मान दे कर विदा करें। 

श्राद्ध कर्म शाम, रात, सुबह या अंधेरे के दौरान नहीं किया जाना चाहिए।

पितृपक्ष में गायों, ब्राह्मणों, कुत्तों, चीटियों, और ब्राह्मणों को भोजन करवाने की बड़ी मान्यता बताई गई है।


जाने किस दिन करें किस का श्राद्ध 

जिन जातकों की अकाल मृत्यु हुई होती है उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। 

विवाहित स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। 

नवमी तिथि को माता के श्राद्ध के लिए भी शुभ माना जाता है। 

सन्यासी पितरों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है। 

नाना नानी का श्राद्ध अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को करना चाहिए। 

अविवाहित जातकों का श्राद्ध पंचमी तिथि को करना चाहिए। 

सर्वपितृ अमावस्या यानी अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन उन सभी लोगों का श्राद्ध किया जाना चाहिए जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात ना हो।