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अभिनेता असरानी का निधन, 84 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

अंग्रेजों के जमाने का जेलर" डायलॉग मशहूर अभिनेता असरानी ने 1975 की फिल्म शोले में बोला था, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह डायलॉग उनके और अन्य कई यादगार किरदारों के कारण उनकी पहचान बन गया था।




बॉलीवुड के दिग्गज कॉमेडियन गोवर्धन असरानी का 84 वर्ष की उम्र में मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया। ‘शोले’ के ‘अंग्रेज़ों के जमाने का जेलर’ के रूप में मशहूर असरानी ने 400 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनका अंतिम संस्कार सांताक्रूज में किया गया।


मुंबई| हिंदी सिनेमा के मशहूर कॉमेडियन और अभिनेता गोवर्धन असरानी का सोमवार को 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। बीते पांच दिनों से वे मुंबई के जुहू स्थित आरोग्य निधि अस्पताल में भर्ती थे। असरानी के मैनेजर बाबूभाई थीबा ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए बताया कि आज शाम उनका अंतिम संस्कार सांताक्रूज वेस्ट के शास्त्री नगर शवदाह गृह में किया गया जहां परिवार और कुछ करीबी लोग मौजूद थे,1 जनवरी 1941 को जयपुर में जन्मे गोवर्धन असरानी पिछले छह दशकों से बॉलीवुड का चेहरा रहे हैं। 1960 के दशक में करियर की शुरुआत करने वाले असरानी ने 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। अपनी बेमिसाल कॉमिक टाइमिंग और साधारण चेहरों को यादगार बना देने वाली अदाकारी के कारण वे दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ गए।


उनका सबसे मशहूर किरदार फिल्म ‘शोले’ (1975) का “अंग्रेजों के जमाने का जेलर” आज भी लोगों को हंसी से लोटपोट कर देता है। इसके अलावा ‘खट्टा मीठा,‘चुपके चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘कोशिश’ और ‘बावर्ची’ जैसी फिल्मों में असरानी ने ऐसी भूमिकाएं निभाईं जो पीढ़ियों तक याद रहेंगी।


असरानी ने जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की और आगे की शिक्षा के लिए राजस्थान कॉलेज गए थे। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने बतौर रेडियो आर्टिस्ट काम शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया और फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। इस इंडस्ट्री में उनकी शुरुआत आसान नहीं थी। उन्होंने खुद स्वीकार किया था कि लोग उन्हें कमर्शियल एक्टर नहीं मानते थे। असरानी ने एक पुराने इंटरव्यू में कहा था, “गुलजार साहब बोले थे, ना ना... वो कमर्शियल एक्टर नहीं है, चेहरा कुछ अजीब सा है।”


लेकिन जब असरानी ने अपनी एक्टिंग से पर्दे पर जान डाली तो वही चेहरे का अजीबपन उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गई। उन्हें उनकी पहली बड़ी सफलता फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) से मिली थी। जिसमें वे जया भादुड़ी के साथ नजर आए थे। फिल्म हिट रही लेकिन असरानी का संघर्ष खत्म नहीं हुआ। वे लगातार छोटे-छोटे किरदार निभाते रहे और धीरे-धीरे कॉमेडी के पर्याय बन गए।


असरानी की निजी जिंदगी भी फिल्मों जितनी दिलचस्प रही। उनकी पत्नी मंजू बंसल ईरानी खुद भी एक्ट्रेस थीं और दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था। असरानी ने 2004 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता लेकर राजनीति में भी कदम रखा था और लोकसभा चुनाव अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई थी। छह दशकों के करियर में असरानी सिर्फ हंसी के प्रतीक नहीं रहे बल्कि उन्होंने दिखाया कि कॉमेडी भी संवेदना का सबसे ईमानदार रूप हो सकती है।