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दिल्ली पुलिस की चार्जशीटः CAA-NRC विरोध प्रदर्शन के लिए भाड़े पर बुलाये गए थे लोग

 


नई दिल्ली, 53 लोगों की मौत. 500 से ज्यादा घायल. 1700 एफआईआर. करोड़ो की संपत्ति खाक. और कभी ना भरने वाले जख्म. ये हकीकत है दिल्ली हिंसा की. इस डरावनी, भयावह तस्वीर में रंग भरा सिर्फ चंद मुट्ठीभर लोगों ने. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दिल्ली दंगों के मामले में यूएपीए के तहत फिलहाल 15 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. पुलिस की जांच में पूरी साजिश साफ नजर आती है कि कैसे सरकार को घेरने के लिए लोगों के कत्लेआम और संपत्ति को जलाने की साजिश रची गई. दिल्ली पुलिस पहले ही साफ कर चुकी थी कि दंगो के लिए एक महीने पहले से प्लानिंग की जा रही थी. 

दिल्ली पुलिस को सबूत मिले हैं कि जनवरी से साजिशकर्ता अपने उन गुर्गों को पैसा पहुंचा रहे थे, जिनके ऊपर दंगा करने की जिम्मेदारी थी. इसके लिए करीब डेढ़ करोड़ की रकम खातों में पहुंचाई गई. ताकि मौत बांटने का जखीरा तैयार किया जा सके. बाहर से गुंडों को लाया जा सके. 

पुलिस ने 17 हजार पन्नो की चार्जशीट में व्हाट्सएप चैट के स्क्रीन शॉट्स भी लगाए हैं. जिसमें साफ नजर आ रहा है कि कैसे पूरी प्लानिंग को अमल में लाया जा रहा था. यहां तक कि व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इस साजिश का विरोध कर रहे थे. लेकिन उनको अनसुना करके साजिश को अमली जामा पहनाया गया. व्हाट्सएप का एक ग्रुप जेसीसी के नाम से है, जिसका मतलब था जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी. दिल्ली सहित देश भर में पहले से ही सीएए और एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन चल रहे थे. इन प्रदर्शनों में जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी का सक्रिय रोल था. 

इन प्रोटेस्ट में क्या कुछ हो? क्या रणनीति रहे? इसके लिए एक और व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया था, जिसका नाम रखा गया DPSG यानी दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप. इसके सक्रिय सदस्यों में सफूरा जरगर, उमर खालिद और पुलिस की चार्जशीट में शामिल वो 20 लोग थे. जो लगातार हर इलाके में अपनी सक्रियता बढ़ाने में लगे थे. इसी बीच वो तारीख भी नजदीक आ गई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा शुरू होने वाली थी. तभी 22 फरवरी को आरोपी सफूरा जरगर ने एक संदेश ग्रुप में दिया कि जब तक दंगे नहीं होंगे सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी. 

पुलिस के मुताबिक सफूरा ने ग्रुप पर डाला कि जगह-जगह सड़के जाम कर दो. मुख्य रास्ते ब्लॉक कर दो. देखते ही देखते जो प्रदर्शन पिछले 100 दिनों से दिल्ली के जामिया और शाहीन बाग में चल रहा था, वो पहले जाफराबाद, चांद बाग, तुर्कमान गेट, खुरेजी सीलमपुर में सड़कों पर आ गया. यहां तक कि बड़ी संख्या में पिछले काफी समय से शांत बैठी महिलाएं अचानक से हमलावर हो उठी. इन ग्रुप पर ये मैसेज भी भेजे गए कि महिलाओं को मिर्च पाउडर दिया गया है, जिससे वो पुलिस पर हमला कर सकें. और ऐसा हुआ भी.

22 फरवरी को ही जेसीसी ग्रुप पर सहज़ार रजा खान ने लिखा कि जामिया में ताकत है कि इसको सारे देश मे फैला सके. बस जामिया की एक लड़की हर जगह होनी चाहिए. इसके बाद सफूरा ने लिखा कि सहज़ार बस करो सारा प्लान इसी ग्रुप पर लिख दोगे क्या. 

ऐसा नहीं है कि ये साजिश चल रही थी और पुलिस समेत अन्य जांच एजेंसिया आंख मूंद कर बैठी थी. पुलिस को सब ख़बर थी. यहां तक कि पुलिस को ये जानकारी भी थी कि किस तरह से बसों में भरकर लोगों को शाहीन बाग या अन्य धरना स्थलों पर भेजा जा रहा है. उसके बावजूद कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया. क्या पुलिस ने वही गलती दोहराई जो उसने शाहीन बाग को 6 महीने से ज्यादा समय तक बंधक कर देने वालों के खिलाफ की थी. 

दिल्ली में 22 फरवरी को एक व्हाट्सएप ग्रुप में डाला गया "जब तक दंगा नहीं होगा, हमारी कोई नहीं सुनेगा." जिसके बाद 23 फरवरी से दिल्ली में दंगे की शुरुआत हो गई. दिल्ली दंगों को लेकर स्पेशल सेल की चार्जशीट से खुलासा हुआ कि CAA विरोध प्रदर्शन के लिए कई लोगों को रोज़ के हिसाब से पैसों का भुगतान किया गया. मतलब ये कि दिहाड़ी मज़दूरी करने वालों को पैसे देकर प्रोटेस्ट के लिए बुलाया गया. 

दिल्ली दंगो को लेकर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने कड़कड़डूमा अदालत में चार्जशीट दाख़िल की है. इस मामले में एक आरोपी सफूरा जरगर की चैट चार्जशीट का हिस्सा है. इस मैसेज को 22 फरवरी को सफूरा ने जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी के व्हाट्सएप ग्रुप में डाला था. उसने मैसेज डाला था कि "जफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास चक्का जाम कर दिया गया है और लोगों को वहां पर चक्का जाम को सपोर्ट के लिए इकठ्ठा करना है. यह भी तय किया गया था कि फरवरी 23 को चांद बाग से इकठ्ठा होकर बाकी साइट्स पर जाकर चक्का जाम करना है. क्योंकि चक्का जाम होगा. तभी दंगा होगा. क्योंकि जब तक दंगा नहीं होगा, तब तक हमारी बात कोई नहीं सुनेगा.