बुंदेलखंड की धरती से उठी एक सधी आवाज़ ने देश की सियासत को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
रामकृष्ण कुसमारिया, जो दशकों से भारतीय जनता पार्टी का झंडा उठाए हैं, उन्होंने उस दर्द को जुबान दी जो आज के कई बुजुर्गों के दिलों में पल रहा है।
"बुजुर्गों को साथ ले जाओ तो काम बनता है। क्या उन्हें बाहर कर दोगे? क्या सिर्फ इसलिए कि उनकी उम्र ज़्यादा हो गई?"
कुसमारिया की यह बात उनके गांव की हर उस बुजुर्ग की जुबान बन गई है, जो जीवन भर खेत-खलिहान या देश के लिए खटता रहा और अब उपेक्षा झेल रहा है।