बस में मेरा बेटा है...” — एक मां की सिसकती पुकार और एक गांव की राहत
बारिश हो रही थी, रात का वक्त था, नाले पर पानी उफन रहा था। लेकिन सबसे ज़्यादा डर था उस मां को, जिसकी आंखों के सामने उसके बेटे की बस नदी में फिसल गई।
वह रात किसी के लिए भी सामान्य नहीं थी। कुड़ी नाले की तेज धाराएं जैसे जान मांग रही थीं। बस पुल पर चढ़ी और बहाव ने उसे नीचे की ओर मोड़ दिया। कुछ ही सेकेंड में सवारियां समझ गईं कि अब भगवान ही सहारा है।
बस में 15 से अधिक यात्री थे—कुछ गांव के बुजुर्ग, कुछ बच्चे, कुछ महिलाएं। अंदर एक छोटी बच्ची बार-बार मां से पूछ रही थी—“मम्मी, ये बस डूबेगी क्या?” मां के पास कोई जवाब नहीं था।
गांव के युवाओं और पुलिस ने जो साहस दिखाया, वह सराहनीय है। हर यात्री को जैसे-तैसे बाहर निकाला गया।
मां का बेटा बच गया। लेकिन सवाल बचा रह गया—ये सब रोका जा सकता था। क्यों नहीं रोका गया?